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१८६ स्वर्ण गुलिका से मूर्ति का मिथ्या सम्बन्ध 必学学术学子本***京***本空**於*****本************李永求。 स्वर्ण गुलिका को क्यों ले गया? कैसे ले गया? किसके साथ ले गया? आदि प्रश्नावली पूज्यपाद अमोलकऋषिजी महाराज को सम्बोधन कर कर डाली। यदि इस प्रश्नावली में सुन्दर मित्र यह भी प्रश्न कर डालते कि "दिन को ले गया या रात को? घोड़े पर बिठा कर ले गया या गधे पर? या शिर पर उठाकर ले गया?" तो क्या बड़ी बात थी, सुन्दर मित्र! इसका उत्तर तो कल्पना द्वारा काम चलाने में कुशल ऐसे मूर्ति पूजक ग्रन्थकार ही दे सकते हैं, दूसरे नहीं, फिर आगे उन्माद में मस्त होकर यहाँ तक लिख डाला कि - .. - "इस भगवान् महावीर की मूर्ति के समर्थक पाठ को क्यों छोड़ दिया। शायद इनके पूर्वजों से क्रमशः चली आती हुई वृत्ति का ही अनुकरण कर आपने इस सत्य को छिपाया हो तो आश्चर्य नहीं .....ऐसी तस्कर वृत्ति करने से क्या फायदा हो सकता है।"
सुन्दर मित्र! कौन मूर्ख कहता है कि पाठ छुपाया गया, या छोड़ दिया? क्या आप होश में होकर लिख रहे हैं, या मतमोह के नशे में मस्त होकर? वास्तव में ऐसा लिखने वाला शुद्ध हृदय नहीं हो सकता, क्योंकि पाठ में तो महावीर प्रभु की तो क्या किसी भी प्रभु की मूर्ति का नाम निशान भी नहीं है, जो किसी भी अन्वेषक से छिपी हुई है, हाँ टीका में तो जरूर है, पर टीका को पाठ कहकर बताना तो दिन दहाड़े
आँखों में धूल झोंकना है। सुन्दर मित्र मूलाशय विरुद्ध टीकाओं और ग्रन्थों का सहारा लेकर आपके पूर्वजों ने अनेक प्राणियों को भ्रम में डाला है और आप भी डाल रहे हैं, आप में यह वृत्ति परम्परा से चली
आ रही है, अतएव तस्करवृत्ति ठगाई या धोखेबाजी आप ही लोगों के पल्ले में इन मन्दिरों और मूर्तियों के चलते बन्धी है, जो हम स्थानस्थान पर बता रहे हैं।
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