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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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इसके सिवाय आपने प्रश्न व्याकरण का नाम देकर लिखा है कि " श्री ऋषिजी ने वीतभय पाटण के राजा उदाई की स्वर्ण गुलिका दासी को उज्जैनी नगरी का राजा चण्ड प्रद्योतन ले गया इतना उद्धरण तो दे दिया" यह टीका के आधार से ही पर मूर्ति ले जाने की बात छोड़ दी वा इतनी बात बिना मूल के क्यों लिखी ? इत्यादि इसके समाधान में हमारा कहना है कि - प्रकरण अब्रह्मचर्य का है और इस विषय की कथा आप लोगों की ओर से रची हुई है ही साथ ही टीका में भी उल्लेख है, इसी पर से राजाओं और नगरों के नाम देकर संक्षेप में हाल बता दिया, जो कि सूत्राशय को अबाधित होकर प्रकरण संगत है, किन्तु प्रकरण विरुद्ध ऐसी कल्पित बात तो आप ही लोगों के मानने की है आपके सिवाय निष्पक्ष विचारक तो ऐसा अडंगों को कदापि सत्य नहीं मान सकता।
महानुभाव! ऐसे एक ही नहीं, अनेकों जगह पर आप लोगों के पूर्वजों ने अपनी चतुराई और विद्वता का दुरुपयोग कर व्यर्थ के अडंगे लगाये हैं | आपका जितना कथा साहित्य है सभी मन्दिरों और मूर्तियों के रंग में रंगा हुआ है। शायद ही ऐसा कोई कथानक होगा जिसमें मन्दिरों और मूर्तियों का सम्बन्ध नहीं मिलाया हो, यहां तक कि सूत्रों में आये हुए कितने ही कथानकों में मूल में नहीं होने पर भी मनमाने मन्दिरों और मूर्तियों को चतुराई पूर्वक स्थान दे दिया गया हैं, इसी का यह परिणाम है कि हजारों लोग इसके चक्कर में आकर अपनी गाढ़ी कमाई के पैसे को किसी उच्च कार्य में नहीं लगा कर ईंट, चूना और पत्थर में डालकर उससे अपनी मुक्ति होना मानते हैं।
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सुन्दर मित्र ! श्रीमद्भगवती सूत्र श० १३ उ० ६ में वीतभय नगर के श्री उदायी राजा और प्रभावती रानी का चारित्र मूल पाठ में स्पष्ट रूप से बताया गया है जिसमें यह लिखा है कि -
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