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अनुसार बोलवानो नियम होयतो ते पाठ बोलती वखते ते श्रद्धा सम्यक्त्व पूर्वक ते बोलता हशे ? ना, ना तेम कदीपण बनवा सम्भव नथी, नज बने, एटले ए सिद्ध थाय छे के सूर्याभदेव जे प्रतिमा पूजन करेल छे ते धर्म के आत्मकल्याण नी भावना थी नहि पण रूढ़िगत प्रणालिका ना बन्धन थी, अने तेवी क्रिया सम्यक्त्वी के मिथ्यात्वी बने करे तेमां जरा महत्ता नथी, देवस्थान मां देवलोकादि मां शाश्वत प्रतिमा होय छे, अने तेनुं पूजन ते स्थाने उत्पन्न थयेल देवो करे छे पण तेथी एम नथी समजवान के ते दरेक प्रतिमा जिनेश्वर देवनीज होय छे अने तेना पूजक देवो बधाय सम्यक्त्वीज होय छे, कारण के सामान्य देव होय के इन्द्रादि देव होय ते सम्यक्त्वी होय छे अने मिथ्यात्वी पण होय छे, इन्द्रादि देवो सम्यक्त्वीज होय अमुक जग्याना देव सम्यक्त्वीज होय, एवो चोक्कस सिद्धान्त नियम नथी, दरेक जीव दरेक स्थाने उत्पन्न थयेल छे, श्री जीवाभिगमजी सूत्र मां चार प्रकारनी जीवनी पडिवत्ती मां वीतराग देव फरमावे छे के
" सोधमीसाणे सुणं भंते कप्पेसु सव्वेपाणा सव्वेभूया सव्वेजीवा सव्वेसत्ता पुढवीकाइयताए जाव वणसइकाइयताए देवत्ताए देवीत्ताए आसणसयण जाव भंडमत वगरणताए उवन्न पुव्वा ? हंता गोयमा असइ अदुवा अणंतखुत्तो सव्वेसु कप्पेसु एवं चेव नवरं नो चेवणं देवीत्ताए जाव गेविजवा अणुत्तरोववाइए सुविएवं नो चेवणं देवत्ताए देवीताए सेतं देवा । "
अर्थ - सुधर्मा इशान देवलोक ने विषे अहो भग़वंत, सर्वप्राणी, सर्वभूत, सर्वजीव, सर्वसत्व पृथ्वीकाय पणे यावत् वनस्पति काय पणे, देवता पणे, देवांगना पणे, सिंहासन, शय्या, ज्यान, भण्ड, उपकरण पणे अतीतकाले उपना छे? हाँ गौतम वारम्वार निश्चय अनन्ती
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