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सूर्याभ देव नो दाखलो मूर्ति पूजा सिद्ध करवा माटे सूर्याभ देवनो दाखलो बहुवार अने मुख्यताए अपाय छे पण ते केटलो अवास्तविक छे तेनो आज पुस्तकमां श्रीयुत दोसीए बहुज सारी रीते अने स्पष्टता थी समजावेल छे, एटले ए सम्बन्धी वधु तो कांइ लखवा जेवू योग्य जणातुं नथी छतां एबाबत परत्वे जरा विचार करतां एक प्रश्न थाय छे के वर्तमान सूर्याभदेव परदेशी राजा नो जीव छे, अने परदेशी राजाए पोतानी पाछली अवस्था मां श्रावक पणुं-श्रमणोपासक पणुं पालेलं, तेथीते मरीने सूर्याभदेव थया पछी पण ते देव पणामां सम्यक्त्वी -जैनधर्मी रह्या छे, एटले तेणे करेल परम्परागत रूढ़ि अनुसार प्रतिमा पूजनने जिनेश्वर देवनी प्रतिमा ठरावाय छे, अने नमुत्थुणं ना पाठनो उल्लेख करावाय छे, परन्तु सूर्याभ देव तो दरेक काले होयज, अने ते सूर्याभ देवनी जग्या अने नाम कदाच एनेए होय, स्थान परत्वे नो नाम कायम होय छे-परन्तु देवना आयुष्यनी तो अमुक स्थिति होय छे, ते स्थिति पूर्ण थतां ते देव आयुष्य पूर्ण करी स्व कर्मानुसार कोई पण गतिमां जाय छे, पछी थी एज जग्याए बीजो कोई जीव आवीने उत्पन्न थाय छे, अने तेपण स्थान परत्वेना नाम थी सूर्याभदेव कहेवाय छे, ए नाम थी ओलखाय छे, अने ते सूर्याभ-दरेक सूर्याभ देव सम्यक्त्वी -जैनधर्मी होय छे-होयज-एवो कोई चोक्कस सिद्धान्त नथीं, तेथी सूर्याभदेव मिथ्यात्वी पण होय, अने ए मिथ्यात्वीदेव पण परम्परागत रूढ़िने अनुसरी प्रतिमा पूजन जरूर करेज, त्यारे पण शुं ते मिथ्यात्वीदेव जिनेश्वर देवनी प्रतिमा मानीने जिनेश्वरदेव प्रत्येना भक्तिभाव श्रद्धा थी पूजन करता हशे? अने नमोत्थुणं नो पाठ पण कहेता हशे? अने कदाच नमोत्थुणं नो पाठ पण रूढ़ि
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