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द्रौपदी और मूर्ति पूजा ***京*****空****本空************** ********
मथुरा के म्युजियम में कंकाली टीले से निकली हुई प्राचीन मूर्तियों में कामदेव की भी एक मूर्ति है। इसके विषय में “मथुरा के संग्रहालय में" नामक परिचय पुस्तिका के चित्र परिचय पृ० १५ पं० १ से चित्र नं० २० के परिचय में लिखा है कि -
“२० भगवान् कामदेव या कुसुमायुध की मिट्टी की मूर्ति (नं० २६६१) पुष्प माल्याभरणों से अलंकृत पुष्पित भूमि में खड़े हुए कामदेव के दाहिने हाथ में पंचबाण और बांये में कोदण्ड है।"
बस अब आपको और क्या चाहिए? विश्वास न हो तो स्वयं पधारकर दर्शन कर आइये। आपकी शङ्का दूर हो जायगी और आप भी शायद द्रौपदी के विषय में अपने विचार बदलकर उसकी पूजा को तीर्थंकर पूजा नहीं मानेंगे।
लग्न प्रसंग में मूर्ति पूजा का कारण सुन्दर बन्धु ने इसी पुस्तक के मूर्ति पूजा विषयक प्रश्नोत्तर पृ० २७१ में लिखा है कि -
“लग्न जैसे रङ्ग राग के समय भी अपने इष्ट को नहीं भूली तो दूसरे दिनों के लिए तो कहना ही क्या था। धर्मी पुरुषों की परीक्षा ऐसे समय ही होती है।" आदि ... इस प्रकार द्रौपदी के लग्न प्रसंग की पूजा को धर्म भावना युक्त बतलाते हैं किन्तु इन्हें जरा विचार करना चाहिये कि - एक तो द्रौपदी निदान कर्मवाली थी दूसरे निदान कर्म के कारण प्रबल भोग इच्छा वाली थी, और ऐसी लम्बे समय की इच्छित कामना के पूर्ण होने का समय भी उसी दिन का था, ऐसी हालत में भला कौन विचारक द्रौपदी को उस समय धर्म भावना वाली कह सकेगा? संयोग और संस्कार ही
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