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... जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा ********************学产学学术学************** अनेक घटनाओं में से केवल एक "प्रेम के झरने' वाली घटना तो सुप्रसिद्ध है। बस इसी के झपेटे में द्रौपदी भी आ चुकी थी, सो भी इस भव से ही नहीं, किन्तु पर भव से, ऐसी दशा में पूर्व संस्कारों के उदय से द्रौपदी इस जिन (काम) देव की मूर्ति की पूजा करे तो यह सर्वथा सम्भव है इसलिए एक प्राचीन प्रमाण भी देख लीजिये।
विजय गच्छ के श्री गुणसागर सूरि ने विक्रम सम्वत् १६७२ में “ढाल सागर" नाम के एक काव्य ग्रन्थ की रचना की, उसके खंड ६ ढाल ११५ के दोहे में द्रौपदी के पूजनीय आराध्य देव का खुलासा इस प्रकार है -
“करि पूजा “कामदेवनी" भांखे द्रुपदी नार।
देव दया करी मुझने भलो देजो भरथार॥८॥"
उक्त दोहे से हमारे कथन की अच्छी तरह से पुष्टि हो गई, यह मन्तव्य वास्तव में प्रकरण के अनुसार है, यदि यहाँ यह अर्थ न माना जाय तो बताइये ऐसा कौनसा स्थल है जहाँ श्री हेमचन्द्राचार्य का जिन शब्द का कामदेव अर्थ उपयुक्त हो सके?
. इस विषय में सुन्दर मित्र ने एक तर्क यह भी उठाया है कि कामदेव तो अनंग है, फिर अनंग (अङ्ग रहित) की मूर्ति कैसे बनाई जा सके? यह शङ्का ठीक है, पर यदि संसार व्यवहार पर जरा दृष्टि डाली जाय तो यह शङ्का भी नहीं रहने पाती, आप यह तो जानते हैं कि सिद्ध अरूपी है फिर भी मूर्ति पूजक उनकी भी मूर्ति बनाते हैं। जैनी लोग जिनवाणी को सरस्वती कहते हैं, फिर भी आपके मूर्ति पूजक लोग सरस्वती की भी मूर्ति बनाते देखे गये हैं, इसी प्रकार कामदेव की भी मूर्ति बने तो सन्देह नहीं, अजी सन्देह किस बात का? सत्य ही है, इच्छा हो तो एक प्रमाण भी लीजिये -
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