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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
अनेकों भव करती हुई, भटकती भटकती मनुष्य भव को प्राप्त हुई । वहाँ सुकुमालिका नामकी बालिका के नाम से पहिचानी जाने लगी, दुःख से दुःखी हो चारित्र ग्रहण किया, कुछ ही समय बाद चारित्र से पतित होकर शिथिलाचारिणी बनी। गुरुणी ने सुकुमालिका आर्या को अपने से पृथक् कर दिया। इस प्रकार चारित्र विराधना करती हुई एक बार एक वेश्या को पांच पुरुषों के साथ क्रीड़ा करते देखकर यह निदान किया कि "यदि मेरी करणी का फल हो तो मैं भी इसी प्रकार पाँच पति के साथ विपुल भोग भोगती हुई विचरूँ" । इस प्रकार निदान कर बिना आलोचना प्रायश्चित्त लिये विराधिका हो मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग में गई। वहाँ से द्रौपदी पने उत्पन्न हुई । यौवनावस्था के प्राप्त होने पर उसके लिये स्वयंवर रचा गया। उस समय स्नानादि से निवृत्त होकर जिन घर गई, वहाँ जिन प्रतिमा की पूजा कर स्वयंवर मण्डप में गई। निदान के प्रभाव से और सभी राजा महाराजाओं को छोड़कर पाण्डव पुत्र के गले में वरमाला डालकर पाँचों भाइयों की पत्नी बनी। इस प्रकार द्रौपदी का संक्षिप्त कथानक है। इसमें "केवल जिन प्रतिमा की पूजा की" इतना मात्र होने पर बिना ही कुछ सोच विचार किये ये लोग मूर्ति पूजा सिद्ध करने चले हैं इस विषय में इन भाइयों की ओर से सामने आती हुई निम्न बातों पर विचार करना है। १. द्रौपदी श्राविका थी ।
२. द्रौपदी की पूजी हुई प्रतिमा तीर्थंकर की थी । ३. द्रौपदी ने नमुत्थुणं से स्तुति की थी ।
खासकर उक्त तीन युक्तियाँ हमारे सामने प्रस्तुत की जाती हैं, और हमसे द्रौपदी की जैसे पूजा करने का अनुरोध किया जाता है अब हम तीनों युक्तियों पर क्रम से विचार करते हैं.
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