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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा 卒*************好**************************** क्योंकि ऐसे कई प्रकरण हैं, जहाँ स्नान विशेष अर्थ ही होता है, जो हम पहले लिख चुके हैं, संक्षेप में फिर भी देखिये -
(१) भद्रा सार्थवाही ने पहले जलाशय में जल क्रीड़ा की, स्नान बलिकर्म किया, फिर पूजन सामग्री लेकर पूजा की, अतएव देवपूजा और बलिकर्म भिन्न भिन्न हुआ।
(२) तीर्थंकर किसी की भी मूर्ति नहीं पूजते और भगवती मल्लिकुमारी ने बलिकर्म किया, अतएव यह भी स्नान विशेष ही है।
(३) द्रौपदी ने प्रथम स्नानगृह में स्नान बलिकर्म किया, बाद में वहाँ से निकल कर देव पूजा करने गई, यहाँ दोनों की परस्पर भिन्नता आपके मत को बाधक है।
(४) केशी श्रमण ने प्रथम स्नान बलिकर्म, और बाद में देव पूजन के लिये जाने का कहा, यह स्पष्ट आपको विफल मनोरथ ठहराता है। ___ (५) वनजीवी लोगों ने भारी जङ्गल में स्नान बलिकर्म किया, ऐसे अरण्य में मन्दिर मूर्ति के अभाव से आपका अर्थ असंगत ठहरता है।
(६) सुखोपभोग के वर्णन में जहाँ कि देव पूजा की किञ्चित भी आवश्यकता नहीं, इस शब्द का प्रयोग हुआ, यह प्रत्यक्ष आपको हठवादी बतलाता है।
(७) वेश्यागमन के पहले स्नान बलिकर्म तो संगत हो सकता है पर देव पूजा तो नाम मात्र को भी नहीं। अतएव यहाँ भी बलिकर्म का अर्थ स्नान विशेष ही समझो।
(८) इसके सिवाय कई स्थानों पर स्नानगृह (गुसलखाने) में प्रवेश कर स्नान बलिकर्म करने, और फिर वस्त्र पहिनकर बाहर निकलने का वर्णन मिलता है। इससे भी यही सिद्ध होता है कि बलिकर्म अर्थ
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