SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 179
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३४ ********* सिद्ध की। तुंगका के श्रमणोपासक (६) श्री हेमचन्द्राचार्य ने - (क) पद्मिनी रानी को नग्न खड़ी रखकर उसके सामने विद्या (योगशास्त्र प्रस्तावना) **** (ख) शिव-शंङ्कर की स्तुति की । (प्र० च० ) (ग) रात्रि को उपाश्रय से निकल कर शहर के बाहर गये और देव देवियों को बल बाकुल चढ़ाये । (प्र० च० ) (७) जिनदत्त सूरि आदि अनेक आचार्यों ने देवाराधन कर चमत्कार बताये। (८) वर्तमान के चतुर्थ स्तुति मानने वाले सभी साधु सदैव प्रतिक्रमण में दोनों समय अविरति देवों की स्तुति कर साहाय्य माँगते हैं। जब मूर्ति पूजक साधु ही मुनिधर्म के विपरीत देव साहाय्य की प्रार्थना करते हैं तब गृहस्थ करे उसमें बाधा ही क्या हो सकती है ? हम तो केवल यही कहते हैं कि किसी तरह की सहायता मांगे बिना भी सांसारिक आवश्यक व्यवहार को अदा करने के लिये सम्यक्त्वी श्रावक गृहदेव की पूजा करे तो उसमें उसकी सम्यक्त्व को कोई बाधा नहीं है, और इस प्रकार यदि आपके टीकाकार और अन्य विद्वानों के मतानुसार उन श्रावकों को सांसारिक गृह देवता की पूजा करने वाले भी माने जाये तो भी आपको तो निराश ही होना पड़ता है, क्योंकि आपकी तीर्थंकर मूर्ति को पूजने का तो वहाँ किञ्चित् मात्र भी आधार नहीं है, फिर कुतर्की बनकर उत्सूत्र प्ररूपणा करके क्यों आत्मा को भारी बनाया जा रहा है? क्या परभव से एकदम निर्भय हो गये ? Jain Education International सुन्दर मित्र ! जो भी आपके विद्वानों ने बलिकर्म का अर्थ गृहदेव पूजा किया है, किन्तु यह अर्थ भी सभी जगह संगत नहीं हो सकता, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy