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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा १२१ ********次***********半******************** "अरिहंत चेइयाई" पाठ में के प्रक्षिप्त अरिहंत शब्द का भी रहस्योद्घाटन करते हैं देखिये - यदि मूर्ति पूजकों व आपके मतानुसार उपासक दशांग सूत्र के आनन्दाधिकार में “अरिहंत चेइयाइं" शभ्द ही होता तो ये लोग इसे छोड़कर खाली "चेइयाई" के लिए समवायांग की ओर नहीं लपकते? जो कि केवल नगरी के वर्णन के साथ आया है??? अतएव सिद्ध हुआ कि उपासक दशांग का “अरिहंत" शब्द “क्षेपक" ही है। उपासक दशांग में जहाँ नगरी के वर्णन के साथ चैत्य शब्द आया है वहाँ सब जगह व्यंतरायतन अर्थ को ही बताता है, देखिये - "पुण्णभद्देचेइए।कोट्ठग्गचेइए।गुणसिलएचेइए।" आदि इन सभी चैत्यों से आप किसी प्रकार भी जैन मन्दिर या तीर्थंकर मूर्ति अर्थ नहीं कर सकते। अतएव निवेदन है कि कृपा कर अनर्थ करना छोड़ कर और उत्सूत्र भाषण का प्रायश्चित्त लेकर आत्मा को भारी पाप से बचाइये। वे आदर्श श्रमणोपासक कभी भी मूर्ति पूजक नहीं थे, न आप या आपके कोई विद्वान् उन्हें मूर्ति पूजक सिद्ध कर सकते हैं। (१७) अंबड परिव्राजक और मूर्तिपूजा ___ औपपातिक सूत्र के ४० वें सूत्र में अम्बड़ परिव्राजक का चरित्र वर्णन किया गया है। उसमें भी आनन्द श्रमणोपासक की तरह लगभग मिलता जुलता एक पाठ है, जिसको लेकर हमारे मूर्ति पूजर बन्धु श्री ज्ञानसुन्दरजी अम्बड को मूर्ति पूजक ठहराने का प्रयत्न करते हैं। ___ पाठकों को यह स्मरण रखना चाहिये कि श्रीमद् जम्बू स्वामी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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