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________________ ११८ आनंद-श्रमणोपासक ************************************** सुंदर मित्र! इस नोंध में तो कहीं भी मूर्ति पूजने मंदिर बनवाने आदि का नाम निशान तक नहीं है फिर आप व्यर्थ का झंझट क्यों मचाते हैं? क्या आप इस वर्णन के "चेइयाई" शब्द पर तो आपत्ति नहीं कर रहे हैं? इसी पर तो आप लोगों ने बल दिया है। किन्तु आपका यह प्रयत्न भी विफल है, क्योंकि इसी शब्द के आगे पीछे का सम्बन्ध देखने पर कोई भी सुज्ञ इस शब्द का अर्थ श्रावकों के जिन मन्दिर नहीं करेगा, इस शब्द के साथ ही यह वर्णन है कि - "नगराणंउज्जाणाइंचेइयाइवणखंडारायाणो।" अर्थात् - "उपासकों के रहने के नगर, उद्यान, व्यंतरायतन, वनखंड राजा" इसका यह मतलब नहीं कि वे नगर, उद्यान, व्यंतरायतन, वनखंड राजा आदि उन उपासकों के खुद के स्वतंत्र थे किन्तु इसका यह तात्पर्य है कि उपासक दशांग में जो उपासक जहाँ रहते थे वहाँ के नगर, उद्यान, व्यंतरायतन, वनखंड राजा आदि का वर्णन है। यदि सुन्दर हिसाब से चैत्य शब्द का अर्थ जिन मन्दिर हो और वो चैत्य उपासकों के खुद के बनाये हुए माने जाय तो फिर सुन्दर बन्धु को नगर, उद्यान, वनखंड, राजा, धर्माचार्य धर्मकथा आदि भी उपासकों के खुद के बनाये हुए मानने चाहिए? किन्तु ऐसा मानना ही अनुचित है विशेष तात्पर्य तो वहाँ है जो ऊपर बताया गया है, विशेष स्पष्टता के लिए आनन्दाधिकार का निम्न पाठ देखिये - ___“वाणिये गामे नामं नयरे होत्था वण्णओ। तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तर पुरत्थिमे दिसीभाए "दुइपलासए नामंचेइए।" तत्थं वाणियगामे नयरे जियसत्तु राया होत्था वण्णओ। तत्थ णं वाणियगामे आणंदे नाम गाहावइ अड्ढे जाव अपरिभूए।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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