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जैनागम विरुद्ध मूर्ति पूजा
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समवायांग के नाम से भ्रम आगे चल कर आपने व विजयानंदजी ने समवायांग सूत्र में आनंद श्रावक के मूर्ति पूजा का हाल होना बतलाया है। यह भी मिथ्या चेष्टा है क्योंकि समवायांग में कहीं भी ऐसा उल्लेख नहीं है, जिस बात पर आप अपना आधार समझते और समझाते हैं वही बात (वही मूल पाठ जो आपने दिया है) लिखकर आपका भ्रम जाल का छेदन किया जाता है। देखिये - ___ “से किं तं उवासगदसाओ? उवासगदसासुणं, उवासयाणं, नगराइं, उज्जाणाई, चेइयाई, वणखंडा, रायाणो, अम्मापियरो, समोसरणाइं, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइय, परलोइय, इड्डि विसेसा, उवासयाणं, सीलव्वय, वेरमणं गुण, पच्चक्खाण, पोसहोववास पडि वज्जियाओ, सूयपरिग्गहा, तवोवहाणाइं, पडिमाओ उवसग्गा, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाई, पावोगमणाई, देवलोगगमणाई, सुकुल पच्चाया, पुणो बोहि लाभो, अंतकिरियाओ, आघविज्जति।"
अर्थ - उपासक दशांग में क्या है? उपासक दशांग में उपासकों के नगर, उद्यान, चैत्य, वनखण्ड, राजा, माता, पिता, समवसरण, धर्माचार्य, धर्मकथा, इहलौकिक, पारलौकिक, ऋद्धि विशेष का कथन है और उपासकों के शीलव्रत, वेरमणव्रत, गुणव्रत, प्रत्याख्यान, पौषधोपवास व्रत, सूत्र ग्रहण तपोपधान, उपासक प्रतिमा, संल्लेषणा, भक्त प्रत्याख्यान, पादोपगमन करना, देवलोक गमन, उच्च कुल में जन्म, पुनः बोधिलाभ, अन्तक्रिया करना यह वर्णन किया गया है।
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