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आनंद- श्रमणोपासक
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पूजा के लिए सूत्र को पूर्व से लेकर पश्चिम तक टटोल लिया जाय तो एक शब्द तो दूर एक अक्षर भी नहीं मिलेगा। यह स्थिति स्पष्ट बता रही है कि उपासक दशांग में मूर्ति पूजा का नाम निशान भी नहीं हैं। इसलिए सुन्दर बन्धु को चाहिए कि आप संकुचित कर देने की कुयुक्ति को छोड़कर बस यही कह दीजिये कि सूत्रकार या संकलन कर्त्ता ने मूर्ति पूजा के पाठ को ही "छोड़ दिया" यही शब्द आपके लिए ठीक है । क्योंकि संकुचित शब्द तो वस्तु के सद्भाव को स्थान देता है अतएव आपको चाहिए कि आप संकुचित शब्द को निकाल कर "छोड़ दिया" शब्द लगा दीजिये और इसमें हानि ही क्या है, यह तो आपके घर की रीति ही है। आपके विजयानंद सूरिजी ने भी सम्यक्त्व शल्योद्धार में ऐसा किया है जरा वह भी देख लीजिये -
" सूत्र में पांडवों ने संथारा करा यह अधिकार है और उद्धार कराया यह अधिकार नहीं है" इससे यह समझना कि " इतनी बात सूत्रकार ने कमती वर्णन करी है । "
(हिन्दी सम्यक्त्व शल्योद्धार चतुर्थावृत्ति पृ० १५७) बस सुन्दर मित्र आप भी यह कह दीजिये कि - आनंद के मूर्ति पूजा की बात सूत्रकार ने कमती वर्णन की है, या छोड़ दी है किन्तु आनंद ने मूर्ति पूजा तो की थी।
महाशय ! इस प्रकार के मिथ्या प्रयत्न ही आपको व आपके सूरियों को अभिनिवेशी घोषित करते हैं । जितने विषय समवायांग में उपासक दशांग की नोंध लेते हुए बताए हैं वे सभी विषय उपासक दशांग में मौजूद हैं, हाँ पहले विस्तृत रूप से होंगे, व अब संक्षिप्त रूप से है किन्तु हैं सभी विषय । अतएव उक्त कुयुक्ति एक दम मिथ्या है।
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