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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा ****************** अनुवाद में अशुद्धि नहीं है, किन्तु हमारा यहाँ यह कहना है कि - यहाँ सुंदरजी ने जो अशुद्धि बताई है उसमें सुंदर मित्र की ही मूर्खता है। सुंदर मित्र पृष्ठ ८१ में लिखते हैं कि - “ऋषिजी को पूछा जाय कि आपने अनुवाद में जैनके भ्रष्टाचारी साधु लिखा है उसमें साधु तो शायद आप 'चेइआणि वा' का अर्थ कर दिया होगा, परन्तु जैन यह किस शब्द का अर्थ किया है? और आगे आप साधु के साथ भ्रष्टाचारी शब्द जोड़ दिया है यह किस मूल पाठ का अनुवाद है क्योंकि आपके मूल पाठ में तो यह दोनों (जैन और भ्रष्टाचारी) हैं ही नहीं फिर आपने यह कल्पना कर उत्सूत्र भाषित्व का वज्र पाप शिर पर क्यों उठाया?” आदि Jain Education International १११ इस प्रकार अज्ञता प्रदर्शित कर सुन्दरजी अपनी योग्यता बता रहे हैं, किन्तु यदि शांत बुद्धि से विचार किया जाय तो जो अर्थ शास्त्रोद्धारक महर्षि ने किया है, यह योग्य ही है, क्योंकि मूल पाठ में " अण्णउत्थिय परिग्गहियाणि चेइयाई” शब्द आया है। जिसका शब्दार्थ होता है“अन्य तीर्थी के ग्रहण किये हुए साधु” केवल इसी शब्दार्थ पर से यह विशेषण अच्छी तरह से लग सकते हैं, जैसे कि "अन्य यूथिक - जैन के सिवाय अन्य तीर्थी, परिगृहित - ग्रहण किये हुए, चैत्य साधु” जिन अन्य तीर्थीकों ने जैन के साधु को ग्रहण कर लिया है वो जैन के हिसाब से तो भ्रष्ट साधु ही हुआ, अतएव भ्रष्टाचारी विशेषण उचित ही है। दूसरा यहां परमार्थ भी जैन के साधुओं को ही ग्रहण करने का है, अन्य को नहीं, क्योंकि अन्य समाज के साधुओं का तो समावेश प्रथम वाक्य में ही हो गया। अतएव जो भी विशेषण इस विषय में दिये गये हैं वे उचित ही है और यदि आपको मान्यतानुसार यहाँ अरिहंत शब्द मान भी लिया जाय तो भी कोई हानि नहीं है, For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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