SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा बनाने में उसकी बहुत विडंबना करेंगे इत्यादि अनेक विडंबना की संभावना को दूर करने के लिए और अरिहंत की भक्ति रूप शुद्ध भावना के निमित्त वह पुष्प श्रावक खरीद कर के जिन प्रतिमा को चढ़ावे तो उससे अरिहंत देव की भक्ति होती है और फूलों की भी दया पलती है, हिंसा क्या हुई ? (सम्यक्त्व शल्योद्वार पृ० १८० ) इस प्रकार भोगियों की ओट लेकर ये जोगी लोग फूलों के प्राणों के दुश्मन बनते हैं। विजयानंद सूरि की तर्क भी अजब प्रकार की है । वे भोले भाइयों को यों समझाना चाहते हैं कि हमारे श्रावकों ने माली से फूल खरीद कर उनकी दया कर ली और भोगी लोग ताकते ही रह गये | वाह महात्मन्! अच्छा झांसा दिया? आपके भगवान् को फूल चढ़ जाने से भोगी लोगों को फूल ही नहीं मिलेंगे ? क्या मैं आपसे यह पूछ सकता हूं कि आप माली से फूल खरीद करवा कर अधिक हिंसा तो नहीं करवा रहे हैं? क्योंकि इससे तो माली का रोजगार अधिक चलेगा और वो अधिक फूल पैदा करके बेचेगा । वह आपके भक्तों को भी देगा और भोगियों को भी देगा। इस तरह आप तो कदाचित् दुगुनी हत्या करवाने वाले माने जाओगे। बेचारे फूलों पर तो डबल आपत्ति आ गई। महानुभाव! वास्तव में आपके हृदय में फूलों के जीवों के प्रति दया के भाव थे तो आपका कर्त्तव्य था कि आप भोगियों को समझा कर उनसे फूलों की रक्षा करते और इसी से उनकी रक्षा हो सकती थी । किन्तु आपने तो रक्षा के बहाने उल्टी मार चला दी, यहाँ तो रक्षक सो ही भक्षक वाली कहावत घटित होती है। क्या महात्मन् ? जरा यह भी तो बतला दीजिये कि निम्न आज्ञायें Jain Education International ८६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy