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पूयणवत्तियं ******************** **************** ** आपने अपने "जैनतत्त्वादर्श' ग्रन्थ में प्रदान की हैं, क्या ये भी दया से प्रेरित होकर की हैं? जैसे कि -
“पत्र, बेल, फूल प्रमुख की रचना करनी xxx शतपत्र, सहस्र पत्र, जाइ, केतकी, चम्पादिक विशेष फूलों करी माला मुकुट सेहरा फूल घरादि की रचना करे।"
. (पृ० ४०५) . “फूल घर कदलिघरादि महा पूजा करे।" (पृ० ४७३)
"सुन्दर-अङ्गी, पत्र-भंगी, सर्वांगाभरण, पुष्पगृह, कदलीगृह, पूतली पाणी के यंत्रादि की रचना करे।” (पृ० ४७४)
यहाँ कुछ प्रश्न करने की इच्छा होती है, अतः निम्न प्रश्न मूर्ति पूजक विद्वानों की सेवा में पेश किये जाते हैं। यथा -
(१) क्या माली से खरीदे हुए फूलों से दया होती है, वैसे वृक्ष, लता से तोड़कर चढ़ाने में भी दया होती है?
(२) आपके मन्दिरों के समीप तथा दूर फूलवारी रहती है। जिसमें से फूल तोड़कर पूजा के काम में लिये जाते हैं, तो क्या इसमें भी दया ही होती है?
(३) आपके कल्प सूत्र में एक कथा आई है, उसमें लिखा है कि एक नगरी में बौद्ध मतानुयायी राजा ने जैनियों को पूजा के लिए फूल नहीं लेने दिये। जिससे दश पूर्वधर श्री वज्रस्वामी आकाश मार्ग से अन्य देशों में पहुँचे और वहाँ से लाखों फूल तुड़वा कर ले आये तो क्या यह भी दया का ही कार्य हुआ? इसमें हिंसा तो नहीं हुई ? ___(४) जिस प्रकार फूलों से पूजने में आपने दया बतलाई, उसी प्रकार जल, फल, धूप, दीप आदि से पूजने में भी दया है क्या?क्योंकिजल न्हाने, धोने और गुदा तक धोने के काम में आता है। फल को भी लोग काटकूटकर खाते हैं, कीड़े भी सड़ा देते हैं। अग्नि पर कोई खाना
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