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________________ जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा ७७ **** होते हों तो कोई आश्चर्य नहीं। संभव है कि ये आकारवंत चैत्य और पूर्ण भद्र चैत्य मिलते जुलते ही हों। इस प्रकार आकारवंत चैत्य की व्याख्या न तो टीकाकार ने स्पष्ट की, न टब्बाकार ने ही। मालूम होता है इस चम्पा वर्णन से ही मूर्ति पूजक महानुभावों के हृदय को आघात पहुँचा हो, क्योंकि जब चम्पा जैसी जैन पुरी का शास्त्रकार वर्णन करे और उसमें जैन मन्दिरों का नाम तक भी नहीं हो, यह कितनी विचारणीय बात है ? बस, इसी को लेकर शायद " अरिहंत चेइय" इत्यादि पाठ की सृष्टि होकर पाठान्तर के बहाने पुस्तकों में पहुँचाया गया हो, जिसका स्पष्ट यही आशय है कि किसी तरह मंदिर मूर्ति जनता के गले में डाल देना । पाठकों को हमारे कथन पर अविश्वास नहीं हो, इसके लिए एक और प्रमाण भी यहाँ देता हूँ । मूर्ति पूजक समाज के साक्षर पं० बेचरदासजी दोशी ने " रायपसेणइय सुत्त" का संशोधन और अनुवाद करके प्रकाशित किया है, उसके प्रथम सूत्र में " आमल कम्पा” नगरी का वर्णन करते हुए कोष्टक में औपपातिक सूत्र का वह पाठ भी दिया है जिसमें " आकारवंत चैत्य" का पूरा वर्णन है, किन्तु इस पाठ में आपका पाठान्तर वाला पाठ तो है ही नहीं तथा इसी 'रायपसेणइय सुत्त' की टीका करते हुए टीकाकार मलय गिरि आचार्य ने यावत् शब्द से औपपातिक सूत्र के पाठ की टीका दी है, उसमें भी कथित अरिहंत चैत्य वाला पाठान्तर नहीं दिखाई देता । अतएव स्पष्ट मालूम होता है कि इस पाठान्तर का जन्म - चम्पा वर्णन में आर्हत् मंदिरों का नाम नहीं होने के कारण ही हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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