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________________ चम्पानगरी और अरिहन्त चैत्य ********* हमें आश्चर्य तो सुन्दर मित्र की सुन्दर बुद्धि पर होता है कि वे मूल पाठ के " आकारवंत चैत्य" का ही अर्थ जिन मन्दिर करते हैं, देखिये ७८ ******* " उववाई सूत्र में चेइया - चैत्य का अर्थ ज्ञान न करके यक्ष का मंदिर किया है तो वास्तव में जैन मंदिर था । " ( पृ० ६६) मालूम नहीं होता कि सुन्दरजी ने किस आधार से यहाँ जैन मंदिर अर्थ किया, जबकि आपके टीकाकार और टब्बाकार ही इस विषय में मौन पकड़ रहे हैं, तब आप ऐसा हठ क्यों पकड़ रहे हैं, क्या मंदिर मूर्ति के मोह के कारण ही न? इसके सिवाय सुन्दर मित्र श्री अमृतचन्द्रजी के गुणगान और स्व. पूज्य श्री अमोलकऋषि जी महाराज साहब की निंदा करते पृ० ७० से लिखते हैं कि - "लोकागच्छाचार्य - अमृतचन्द्र सूरि 'अरिहंत चेइया' पाठ मूल में लिखकर उसे पाठान्तर बतलाते हैं यह आपका भव भीरू पना है कि सूत्र में था जैसा लिख दिया, तब ऋषि जी ने मूल पाठ से उस पाठ को निकाल कर फुट नोट में रख दिया । " जैसा सुन्दर मित्र ! आपने पाठान्तर को पाठ में मिला देने वाले अमृतचन्द्रजी की तो प्रशंसा कर दी, क्योंकि उनका प्रयत्न आपके मन भाता हुआ था, किन्तु आप यह बताइये कि आप ही के ये आगमोदय समिति के आगमोद्धारक और पं० भुरालालजी, पं० बेचरदासजी, जिन्होंने आपके प्रिय इस पाठान्तर को मूल पाठ में एक तिलभर भी स्थान क्यों नहीं दिया? और टीकाकार ने इसका निर्देश टीका करते हुए ही क्यों किया ? इससे भी स्पष्ट हो जाता है कि यह वस्तु मूल के साथ रहने की नहीं है । इसलिए इतने प्रमाणों से यह पाठान्तर फुटनोट में www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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