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________________ चम्पानगरी और अरिहन्त चैत्य ********************************* आश्चर्य होता है, क्योंकि सुन्दराकार चैत्यों के साथ यह "जुवईविविह सण्णिविट्ठबहुला" पाठ कैसा? टीकाकार महाराज ने इसका अर्थ, किया कि - "युवतीनां च तरुणीनां पण्यतरुणीनामिति हृदयं, यानि विविधानि सन्निविष्टानि सन्निवेशनानि पाटकास्तानि बहुलानि बहु नि यस्या सा।” अर्थात्-युवती वेश्याओं के अधिकता से है निवास स्थान जहाँ पर, सुन्दर मन्दिरों के साथ वैश्याओं के निवास स्थान का क्या सम्बन्ध?. मालूम होता है कि ये आकारवंत चैत्य, मंदिर नहीं, पर या तो कोई नाट्यशाला, गानशाला आदि हों, या फिर सार्वजनिक आराम स्थान- बगीचे ( गार्डन) हों, या फिर सभा स्थान आदि हों, कि जहाँ नाटक देखने, गाना सुनने, या टहलने को जनता विशेष रूप से आती हो और इसीलिए ऐसे स्थानों के समीप (लोगों का अधिक आवागमन, वह भी आमोद प्रमोद के लिए होता हो) वेश्याओं ने अपने निवास बनाये हों जिससे रसिक लोगों का ध्यान सरलता से अपनी ओर खींचा जा सके। इसके सिवाय उस जमाने में चैत्यों में गान, वादन, नृत्य, नाटक, कई प्रकार के खेल तमाशे भी होते थे, जिसका वर्णन इसी उववाई के पूर्णभद्र चैत्य के सम्बन्ध में लिखा हुआ है तथा मूर्ति पूजक समाज के प्रसिद्ध विद्वान् पं० बेचरदासजी अपने " रायपसेणइय सुत्त नो सार" पृ० ७ के चैत्य वर्णन में टिप्पण नं० १६ में लिखते हैं कि - १६ चैत्यनुं आ वर्णन जोतां ते भारे गम्मतनुं स्थान पण होय एम लागे छे, केटलीक कथाओं मां चैत्य ने 'जुगारीओनो अखाड़ो' 'युवान युवतीओनां मीलननुं स्थान' 'अभिसारिकाओनुं संकेतस्थान' ए रीते वर्णवेलु' छे, ते उपर्युक्त वर्णन जोतां बन्ध वेसे एवं छे । यद्यपि यह वर्णन शहर के बाहर के चैत्य का है, तथापि शहर के भीतर के चैत्य में भी ऐसे कार्य प्राथमिक कोटिके या सुधरे हुए ढङ्ग के For Private & Personal Use Only ७६ Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002998
Book TitleJainagama viruddha Murtipooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year2002
Total Pages366
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size12 MB
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