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जैनागम विरुद्ध मूर्त्ति पूजा
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ने जान बूझकर भोले बन्धुओं को भ्रम में डालने के लिए यह चाल
चली हो ? अस्तु,
अब हम यहाँ मूर्ति पूजकों की प्रसिद्ध आगम प्रकाशिनी संस्था आगमोदय समिति द्वारा प्रकाशित प्रति के अनुसार पं० भूरालाल कालीदास द्वारा प्रकाशित उववाई सूत्र का मूल पाठ यहां उद्धृत करते हैं। “आयारवंत चेइयजुवई विविह सण्णिविट्ठबहुला उक्कोडियागाय गंठिभेय" आदि ।
- (पृष्ठ २) इस प्रति में मूल पाठ के साथ सुन्दर मित्र का दिया हुआ पाठान्तर है ही नहीं। सिर्फ टीका में टीकाकार ने इस सूत्र की व्याख्या करने के साथ पाठान्तर होना बताया है, जो निम्न प्रकार है -
पाठान्तरं "
"आकारवन्ति - सुन्दराकाराणि आकारचित्राणि वायानि चैत्यानि-देवतायतनानि युवतीनां च - तरुणीनां पण्यतरुणी नामिति हृदयं, यानि विविधानि सन्निविष्टानि - सन्निवेशनानि पाटकास्तानि बहुलानि बहूनि यस्यां सा तथा ‘अरिहन्त चेईयजणवईविसण्णिविट्ठबहुले' ति ( पृ०३) इस प्रकार पाठान्तर को मूल पाठ में नहीं मिलाकर अलग टीका में ही रखा है, मूल पाठ की टीका और टब्बार्थ से यह साबित नहीं होता कि यह वर्णन "जैन मन्दिरों" का है, क्योंकि " आकार वंत चैत्य" का अर्थ दोनों ने सुन्दर आकार वाले देवायतन ही किया है और देवायतन तो पहले भी नाग, भूत, यक्ष, वैश्रमणादि अनेक प्रकार
होते थे । इसके सिवाय " आकारवंत चैत्य" इन दो शब्दों से नाट्य भूमि, सभा भवन ( टाउन हॉल) आदि कई अर्थ हो सकते हैं, शायद इसी शङ्का से टीकाकार महाराज ने सुन्दर देवायतन अर्थ करके छोड़ दिया किन्तु इसके बाद साथ वाले पाठ पर दृष्टि डालने पर तो और भी
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