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की हड्डियां, हड्डी की संधियां व ऊपर का वेष्टन वज्र का होवे व किल्ली भी वज्र की होवे)।
२ ऋषभ नाराच संघयन-ऊपर लिखे अनुसार । अंतर केवल इतना कि इसमें वज्र अर्थात् किल्ली नहीं होती है।
३ नाराच संघयन-जिसमें केवल दोनों तरफ मकेट बंध होते हैं।
४ अर्ध नाराच संघयन-जिसके एक तरफ मर्कट बंध व दूसरी ( पड़दे ) तरफ किल्ली होती है।
५ कीलिका संघयन-जिसके दो हड्डियों की संधि पर किल्ली लगी हुई होवे।
६ सेवा” संघयन-जिसकी एक हड्डी दूसरी हड्डी पर चढ़ी हुई हो (अथवा जिसके हाड़ अलग अलग हो, परंतु चमड़े से बंधे हुवे हो)।
(४) संस्थान द्वार-संस्थान छः-१समचतुरस्त्र संस्थान २ निग्रोध परिमण्डल संस्थान ३ सादिक संस्थान ४ वामन संस्थान ५ कुब्ज संस्थान ६ हुएडक संस्थान ।
१ पांव से लगा कर मस्तक तक सारा शरीर सुन्दराकार अथवा शोभायमान होवे सो समचतुरस्त्र संस्थान।
२ जिस शरीर का नाभि से ऊपर तक का हिस्सा सुन्दराकार हो परंतु नीचे का भाग खराब हो (वट वृक्ष स दृश) सो न्यग्रोध परिमण्डल संस्थान ।
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