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चावास दराडका
के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट हजार योजन बाजेरी-(वनस्पतिआश्री)।
वैक्रिय शरीर की-भव धारणिक वैक्रिय की जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट ५०० धनुष्य की।
उत्तर वैक्रिय की जघन्य अल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट लक्ष योजन की।
आहारिक शरीर की जघन्य मूढा हाथ की उत्कृष्ट एक हाथ का।
तेजस् शरीर व कार्माण शरीर की अवगाहन जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट चौदह राज लोक प्रमाणे तथा अपने अपने शरीर अनुमार ।
(३)संघयन द्वार:-संघयन छः-१वज्र ऋषभ नाराच संघयन २ ऋषभ नागच संघयन ३ नाराच संघयन ४ अर्ध नाराच संघयन ५ कीलिका संघपन ६ सेवा संघयन ।
१ वज्र ऋषभ नाराच संघयन-वज्र अर्थात् किल्ली, ऋषभ याने लपेटने का पाटा अर्थात् ऊपर का वेष्टन, नाराच याने दोनों ओर का मर्कट बंध अर्थात् सन्धि-और संघयन याने हाड़कों का संचय-अर्थाद जिस शरीर में हाड़के दो पुड़ से, मर्कट बंध से बंधे हुवे हों, पाटे के समान हाड़के वीटे हुवे हो व तीन हाड़कों के अन्दर बज्र की किल्ली लगी हुई हो वो वज्र ऋषभ नागच संघयन (अर्थात् जिस शरीर
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