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________________ (८४) थोकडा संग्रह । २ वैक्रिय शरीर ३ आहारिक शरीर ४ तेजसू शरीर ५ कार्माण शरीर। - इनके लक्षणः-औदारिक शरीर-जो सड़ जाय, पड़ जाय, गल जाय, नष्ट होजाय, बिगड़ जाय व मरने बाद कलेवर पड़ा रहे। उसे औदारिक शरीर कहते हैं। २ (औदारिक वा उलटा ) जो सड़े नहीं, पड़े नहीं गले नहीं, नष्ट होवे नहीं व मरने बाद बिखर जाये उसे वैक्रिय शरीर कहते हैं। ३ चौदह पूर्व धारी मुनियों को जब शङ्का उत्पन्न होती है,तब एक हाथ की काया का पुतला बना कर महाविदेह क्षेत्र में श्री श्रीमंदर स्वामी से प्रश्न पूछने को भेजें । प्रश्न पूछ कर पीछे आने बाद यदि आलोचना करे तो पाराधक वालोचना नहीं करे तो विराधक कहलाते हैं। इसे आहारिक शरीर कहते हैं। ४ तेजसू शरीर:-जो आहार करके उसे पचावे वो तेजस शरीर । ५ कार्माण शरीर:-जीव के प्रदेश व कर्म के पुद्गल जो मिले हुवे हैं, उन्हें कार्माण शरीर कहते है। (२) अवगाहन द्वार-जीवों में अवगाहना जघन्य अङ्गुल के असंख्यातवें भाग उत्कृष्ट हजार योजन जाजेरी ( अधिक) औदारिक शरीर की अवगाहना जघन्य अङ्गल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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