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________________ (७६) थोकड! संग्रह। कलं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं, वचन से । ३ करूं नहीं, कगऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं, काया से । अांक एक बत्तीस का-तीन करण व दो योग से, त्याग करे । भांगा तीन १ करुं नहीं, कराऊ नहीं, अनुमोदूं नहीं, मन से, वचन से । २ करं नहीं, कराऊ नहीं, अनुमोदूं नहीं, मन से काया से । ३ करूं नहीं, कराऊं नहीं, अनुमोदूं नहीं, वचन से, काया से। अांक एक तेंतीस का-तीन करण व तीन योग स त्याग लेवे । भांगा एक १ करुं नहीं, कगऊ नहीं, अनुोई नहीं, मन से वचन से, काया से। एवं ४६ भांगा सम्पूर्ण । २५ पच्चीशवें बोले 'चारित्र पांच-१ सामायिक चारित्र २ छेदोपस्थानिक चारित्र ३ परिहार विशुद्ध चारित्र ४ सूक्ष्म संपराय चारित्र ५ यथाख्यात चारित्र । ॥ इति पच्चीस बोल सम्पूर्ण ॥ MOHANA ALV NE १ श्रात्मा का पर भाव से दूर होना और स्वभाव में रमण करना ही चारित्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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