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________________ पच्चीस बोल । (७३) (दिशाओं व भोगोपभोगों का परिमाण ) करे ११ पौषध व्रत करे १२ निग्रंथ साधु व मुनि को प्रासुक एषणीक आहागदिक चौह बोल प्रतिलाभे ( अतिथि संविभाग व्रत करे )। २३ तेवीसवें बोले मुनि के 'पंचमहाव्रत-१ सर्व हिंसा का त्याग करे २ सर्व मृषावाद का त्याग करे ३ सर्व अदत्तादान । चोरी) का त्याग करे ४ सव मैथुन का त्याग करे ५ सब परिग्रह का त्याग करे ( मुनि के ये त्याग तीन करण व तीन योग से होते हैं ) २४ चोवीसवें बोले श्रावक के बारह व्रत के ४६ भांगे प्रांक एक ग्यारह का-एक करण एक योग से प्रत्याख्यान ( त्याग) करे। इसके भांग 8 अमुक युक्त दोष कर्म कि जिसका मैंने त्याग लिया है उसे १ करूं नहीं मन से २ करूं नहीं वचन से ३ करूं नहीं काय से ४ कराऊं नहीं मन से ५ कराऊं नहीं वचन से ६ कराऊं नहीं काय से ७ करते हुवे को अनुमोदूं ( सराहूं ) नहीं मन से ८ करते १ बड़े व्रतों को पूर्ण व्रतों को महाव्रत कहते हैं । त्यागी मुनि ही इनका पालन कर सके हैं, गृहस्थ नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only ____www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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