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________________ (७२) थोकडा संग्रह। AMAA गलना, विनाश होना, जीर्ण होना, व विखरना पुद्गलास्ति काय को बादलों का दृष्टान्त । ६ जीवास्ति काय द्रव्य के पांच भेद-१ द्रव्य से अनंत २ क्षेत्र से लोक प्रमाण ३ काल से आदि अंत रहित ४ भाव से अमूर्तिमान (अरुपी) ५ गुण से चैतन्य उपयोग लक्षण जीवास्ति काय द्रव्य को चन्द्रमा का दृष्टान्त । २१ इकोसवें बोले "राशि दो-१ जीव राशि २ अजीव राशि । २२ बावीसवें बोले श्रावक के बारह बत-१ स्थूल ( मोटी, बड़ी) जीवों की हत्या का त्याग करे २ स्थूल झूठ का त्याग करे ३ स्थूल चोरी करने का त्याग करे ४ पुरुष पर स्त्री-सेवन का व स्त्री पर पुरुष-सेवन का त्याग करे ५ परिग्रह की मर्यादा को ६ दिशाओं ( में गमन करने ) की मर्यादा करे ७ चौदह नियम व २६ बोल की मर्यादा करे ८ अनर्थ दंड का त्याग करे ६ प्रति दिन सामायिक आदि करे * १० दिशावकाशिक २१ समूह को राशि कहते हैं । जगत् में जीव तथा पुद्गल द्रव्य अनन्त हैं। इनके समूहों को राशि हते हैं। x पर वस्तु में प्रात्मा लुभा रही है। अतः प्रात्मा को पर वस्तु से अलग कर स्वस्व में कायम रहना व्रत है। ___ * पूर्वोक्न छठे व्रत में दिशा की व सातवें में उपभोग परिभोग का जो परिणाम किया है वह यावज्जीव पर्यन्त है परन्तु यह दिशावकाशिक प्रति दिन का किया जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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