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________________ पच्चीस बोल। (७१) LANvinor २ क्षेत्र से लोक प्रमाण ३ काल से आदि अन्त रहित ४ भाव से अवर्णी, अगंधी, अरसी, अस्पर्शी ( अरूपी ) अमूर्ति मान ५ गुण से चलन गुण । इसे पानी में मछली का दृष्टान्त । २ अधर्मास्ति काय के पांच भेद-१ द्रव्य से एक द्रव्य २ क्षेत्र से लोक प्रमाण ३ काल से श्रादि अंत रहित ४ भाव से अमूर्ति मान ५ गुण से स्थिर गुण अधर्मास्ति काय को-थके हुवे पक्षी को वृक्ष का आश्रय (विश्राम -का दृष्टान्त । ३ अाकाशास्ति काय के पांच भेद- द्रव्य से एक द्रव्य २ क्षेत्र से लोकालोक प्रमाण ३ काल से आदि अन्त रहित ४ भाव से अमूर्तिमान ५ गुण से आकाश विकाश गुण । आकाशास्ति काय को दुग्ध में शर्करा का दृष्टान्त । ४ काल द्रव्य के पांच भेद-१ द्रव्य से अनन्त द्रव्य २क्षेत्र से समय क्षेत्र प्रमाण ३ काल से आदि अन्त रहित ४ भाव से अमूर्तिमान ५ गुण से नूतन(नया) जीर्ण (पुराणा) वर्तना लक्षण काल को नया पुराणा वस्त्र का दृष्टान्त । ५ पुद्गलास्ति काय के पांच भेद-१ द्रव्य से अनंत द्रव्य २ क्षेत्र से लोक प्रमाण ३ काल से आदि अंत रहित ४ भाव से वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श सहित ५ गुण से मिलना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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