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थोकडा संग्रह।
नेरियों का एक दण्डक १, दश भवनपति देव क दश दण्डक, ११, पृथ्वी काय का एक, १२, अप काय का एक, १३, तेजस् काय का एक, १४, वायु काय का एक, १५, वनस्पति काय का एक, १६ बेइन्द्रिय का एक, १७, त्रीइन्द्रिय का एक, १८, चौरिन्द्रिय का एक, १६, तिर्यच पंचेन्द्रिय का एक२०,मनुष्य का एक,२१, वाणव्यन्तर का एक, २२,ज्योतिषी का एक, २३, वैमानिक का एक, २४ ।
१७ सत्तरवें बोले = श्या छः-१ कृष्ण लेश्या २ नील लेश्या ३ कापोत लेश्या ४ तेजो लेश्या ५ पद्म लेश्या ६ शुक्ल लेश्या ।
१८ प्रहारवें बोले दृष्टि तीन-१ सम्यक्त्व (सम्यग) दृष्टि २ मिथ्यात्व दृष्टि ३ मिश्र दृष्टि ।
१६ उन्नीसवें बोले xध्यान चार-१ बात ध्यान २ रौद्र ध्यान ३ धर्म ध्यान ४ शुक्ल ध्यान ।
२० वीसवें बोले षड् (छ)*द्रव्य के ३० भेद । १ धर्मास्ति काय के पांच भेद-१ द्रव्य से एक
= कषाय तथा योग क साथ जीव के शुभाशुभ भाव को लेश्या कहते हैं । योग तथा कषाय रूप जल में लहरों का होना ही लेश्या है।
आत्मा अनात्मा को किसी भी तरह देखना मानना और श्रद्धा करना ही दृष्टि है।
x चित-मन-की एकाग्रता को ध्यान कहत हैं। ध्येय वस्तु प्रति ध्याता की स्थिरता को ध्यान कहते हैं।
* श्राकारादि के बदलने पर भी पदार्थ वस्तु का कायम रहना ही द्रव्य है।
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