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________________ पच्चीस बोल । (६६) मुक्त को अमुक्त समझे तो मिथ्यात्व और १० सर्व दुख स अमुक्त को मुक्त समझे तो मिथ्यात्व । १४ चौदहवें बोले नव Xतत्व के ११५ बोल । प्रथम नव तत्त्व के नाम-१ जीव तत्व २ अजीव तत्व ३ पुन्य तत्व ४ पाप तत्त्व ५ आश्रव तत्त्व ६ संवर तत्व ७निजग तत्व ८ बन्ध तत्त्व ह मोक्ष तत्त्व इन नव तत्त्व के लक्षण तथा भेद-प्रथम नव तत्व के अन्दर विस्तार पूर्वक लिखा गया है अतः यहां केवल संक्षेप में ही लिखा जाता है। १जीव तत्व के १४ बोल, २ अजीव तत्व के १४ बोल,३ पुन्य के ह बोल,४ पाप के १८ बोल, ५ अाश्रव के २० बोल, ६ संवर के २० बोल, ७ निर्जरा के १२ बोल, ८ बन्ध के ४ बोल और ह मोक्ष के ४. बोल । एवं नव तत्व के सर्व ११५ बोल हुवे । १५ पन्द्रहवें बोले = आत्मा आठ-१ द्रव्य आत्मा २ वषाय आत्मा ३ योग श्रात्मा ४ उपयोग आत्मा ५ ज्ञान आत्मा ६ दर्शन प्रात्मा ७ चारित्र आत्मा ८ वीय आत्मा । १६ सोलहवें बोले *दण्डक २४-सात नरक के x सार पदार्थ को तत्व कहते हैं। __= अपनास-अपनापन ही आत्मा है । जीव की शक्ति किसी भी रूप में होना ही आत्मा है । ___ * जिस स्थान पर तथा जिस रूप में रह कर प्रात्मा कर्मों से दण्डाती है, वह दण्डक है । भेद अनन्त हैं परन्तु समावेश चोवीश में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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