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हियमाण वढमाण
(७०७ )
* हियमाण-वढमाण *
श्री भगवती सूत्र, शतक ५ उ०८ (१) जीव हियमान (घटना ) है या वर्द्धमान (बढना ) ? न तो हियमान है और न बर्द्धमान पस्तु अवस्थित ( वध-घट विना जैसे का तैसा रहे ) है।
(२) नेरिया हियमान, वर्धमान और अवस्थित भी हैं एवं २४ दण्डक, सिद्ध भगवान वर्धमान और अवस्थित हैं।
(३) सप्युच्चय जीव अवस्थित रहे तो शाश्वता नरिया हियमान, वर्धमान रहे तो ज० १ समय उ० आव. लिका के असंख्यात भाग और अवस्थित रहे तो विरह काल से दुगणा (देखो विरह पद का थोकड़ा) एवं २४ दण्डक में अवस्थित काल विरह काल से दूना, परन्तु ५ स्थावर में अवस्थित काले हियमान वत् जानना । सिद्धों में बधमान ज०१ समय, उ०८ समय और अवस्थित काल ज०१ समय उत्कृष्ट ६ माह ।
॥ इति हिय माण वढमाण सम्पूर्ण ।।
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