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________________ सोपक्रम-निरुपक्रम । ०५) ® सोपक्रम-निरुपक्रम (श्री भगवती जी सूत्र शतक २० उद्देशा) सोपक्रम आयुष्य ७ कारण से टूट सकता है-१ जल से २ अग्नि से ३ विष से ४ शस्त्र से ५ अति-हर्ष ६ शोक-से ७ भय से (बहुत चलना बहुत खाना. मैथुन का सेवन करना आदि मय से)। निरुपक्रम प्रायुध्य बन्धा हुवा पूरा आयुष्य भोगो बीच में टूट नहीं जीव दोनों प्रकार के आयुष्य वाले होते १ नारकी, देवता, युगल मनुष्य, तीर्थ कर, चकार्ती, वासुदेव, प्रति वासुदेव, चलदेव इन के आयुष्य निरुपकनी होते हैं शेष सर्व जीवों के दोनों प्रकार का प्रायुष्य होता २ नारकी सोपक्रम (स्वहस्ते शस्त्रादि से ) से उपजे, पर उपक्रम से तथा विना उपक्रम से ? तीनों प्रकार से । तात्पर्य कि मनुष्य तिथंच पने जीव नरक का आयुष्य बान्धा होवे तो मरत समय अपने हाथों स दूसरों के हार्थों से अथवा आयुष्य पूर्ण होने के बाद मरे, एवं २४ दण्डक जानना। ३ नेरिये नरक से निकले तो स्वोपक्रन से परोपक्रम से तथा उपक्रम से ? बिना उपक्रम से। एवं १३ देवता के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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