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________________ ( ७०४ ) थोकडा संग्रह | के ६ बालों का बन्ध करे ( २५९६ = १५० ), एसे ही अनेक जीव बन्ध करे । १५० + १५० = ३००, ३०० निद्रस और ३०० निकांचित बन्ध होवे । एवं ६०० भांगा (प्रकार) नाम कर्म के साथ, ६०० गोत्र कर्म के साथ और ६०० नाम गोत्र के साथ ( एकट्ठा साथ लगाने से श्रायुष्य कर्म के १८०० भांगे हुवे ) । जीव जाति निद्धस आयुष्य बान्धते हैं, गाय जैसे पानी को खेचकर पीछे वैसे ही वे आकर्षित करते हैं, कितने आकर्षण से पुद्गल ग्रहण करते हैं । उस समय १-२-३ उत्कृष्ट ८ कर्म खेचते हैं उसका अन्य बहुत्व सर्व से कम ८ कर्म का आकर्षण करने वाले जीव, उनसे ७ कर्म का आकर्पण करने वाले जीव संख्यात गुणा, उनसे ६ कर्म का आकर्षण करने वाले जीव संख्यात गुणा, उनसे ५ - ४ - ३ २ और १ कर्म का आकर्षण करने वाले जीव क्रमशः संख्यात संख्यात गुणा । जैसे जति नाम निद्धप्स का समुच्चय जीव अपेक्षा अल्पबहुत्व बताया है वैसे ही गति आदि ६ बोलों का अल्पबहुत्व २४ दण्डक पर होता है । एवं १५० का अल्पबहुत्व यावत् ऊपर के १८०० मांगों का अल्प बहुत्व कर लेवे | f ॥ इति आयुष्य के १८०० भांगा सम्पूर्ण ॥ Jain Education International SHAS - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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