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योव.डा संग्रह।
७ निश्चय व्यवहार-निश्चय को प्रगट करानेवाला व्यवहार है । व्यवहार बलवान है व्यवहार से ही निश्चय तक पहुँच सक्ते हैं जैसे निश्चय में कर्म का कर्ता कर्म है व्यवहार से जीव कर्मों का कर्ता माना जाता है जैसे निश्चय से हम चलते हैं। किन्तु व्यवहार से कहा जाता है कि गाँव अाया; जल चूता है परन्तु कहा जाता है कि छत चूती इत्यादि है
८ उपादान- निमित्त उपादान यह मूल कारण हैं जो स्वयं कार्य रूप में परिणमता है । जैसे घट का उपादान कारण मिट्टी और निमित यह सहकारी कारण जैसे घट बनाने में कुम्हार, पावडा, चाक आदि । शुद्ध निमित्त कारण होवे तो उपादान को साधक होता है और अशुद्ध निमित्त हावे तो उपादान को वाधक भी होता है ।
६ चारप्रमाण-प्रत्यक्ष, प्रागम, अनुमान उपमा, प्रमाण । प्रत्यक्ष के दो भेद- १ इन्द्रिय प्रत्यक्ष ( पांच इन्द्रियों से होने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान ) और २ नो इन्द्रिय प्रत्यक्ष (इन्द्रियों की सहायता के बिना केवल आत्मशुद्धता से होने वाला प्रत्यक्ष ज्ञान ) इसके २ भेद. १ देस से ( अवधि और मनः पर्यव ) और २ सर्व से ( केवल ज्ञान)
आगम प्रमाण-शास्त्र वचन, आगमों के कथन को प्रमाण मानना।
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