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प्रमण-नय।
(६८७)
का अलग २ गुण है और द्रव्यों में उत्पाद व्यय, ध्रुव आदि परिवतेन होना सा पयोंय है। __ दृष्टान्त-जीव-द्रव्य, ज्ञान, दर्शन आदि गुण, मनुष्य, तिर्यच, देव, साधु आदि दशा यह पयोय समझना
४ द्रव्य, क्षेत्र काल भाव द्वार-द्रव्य-जीव अर्ज व आदि, श्राकाश प्रदेश यह क्षेत्र, समय यह काल [घड़ी जाव काल चक्र तक समझना] वर्ण, गन्ध, रस स्पर्श आदि सो भाव । जीव, अजीव सरों पर द्रव्य क्षेत्र काल भाव घट ( लागु हो ) सका है।
५ द्रव्य--भाव द्वार-भाव को प्रकट करने मे द्रव्य सहायक है। जैसे द्रव्य से जीव अमर, शाश्वत भाव से अशाश्वत है । द्रव्य से लोक शाश्व। है भाव से अशाश्वत है । अर्थात द्रव्य यह मूल वस्तु है, सदैव शाश्वती है भ व यह वस्तु की पर्याय है अशाश्वती है ।
जैसे भोरे के लकड़ कुतरते समय 'क' ऐसा प्रा. कार वनजाता है सो यह द्रव्य 'क' और किसी पण्डित ने समझ कर ' क ' लि वा सो भाव ' क ' जानना ।
६ कारण-कार्य द्वार-साध्य को प्रगट कराने वाला, तथा कार्य को सिद्ध कराने वाला कारण हैं । कारण विना कार्य नहीं हो सकता । जैसे घट बनाना यह कार्य है और इस लिये मिट्टी, कुम्हार, चाक (चक्र) आदि कारण अवश्य च हिय अतः कारण मुख्य है।
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