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________________ वमानिक देव । (६७५) - ४८०००००० जानना शेष में देवियें नहीं होवे केवल पहले दूसरे देव लोक रहे और ८ वें देव लोक तक जाया करे। २० वैक्रिय द्वार-शकेन्द्र वैकिय के देव-देवियों से २ जंबू द्वीप भर देते हैं, ईशानेन्द्र २ जंबू द्वीप जाजेरा सनत्कुमार ४ जंबू० महेन्द्र ४ जंबू॰जाजेरा, ब्रह्मेन्द्र ८ जंबू० लंतकेन्द्र ८ जंबू० जाजेरा, महाशुक्र १६ जंबू० सहसेन्द्र १६ जंबू० जाजेरा प्राणतेन्द्र ३२ जंबू०, अच्युतेंद्र ३२ जंबू० जाजेरा भरे० ( लोक पाल, यस्त्रिंश, देवियें आदि अपने इंद्रवत् ) असंख्य जंबूद्वीप भरदेने की शक्ति है परंतु इतने वैक्रिय नहीं करते हैं । २१ अवधि द्वार-सवे इंद्र ज० अङ्गुल के असंख्यातवें भाग अवधि से जाने-देखे० उ० ऊंचा अपने विमान की वजा पताका तक-तीळ असंख्य द्वीप समुद्र तक जाने देखे और नीच-१-२ देवलोक वाले पहली नरक तक, ३-४ देव० दूसरी नरक तक, ५-६ देव० तीसरी नरक तक, ७-८ देव० चोथी नरक तक, 8 से १२ देव० पांचवी नरक तक, ६ ग्रीयवेक छट्टी नरक तक, ४ अनुत्तर विमान ७ वीं नरक तक और सर्वार्थ सिद्ध वाले त्रस नाली सम्पूर्ण (पाताल कलश) जाने देखे। २२ पश्चिारणा-१-२ देव में पांच ( मन, शब्द, रूप, स्पर्श और काय) परिचारणा, ३-४ देव० में स्पर्श Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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