________________
वाण व्यन्तर विस्तार ।
(६६३)
१३ देवी द्वार-प्रत्येक इन्द्र के चार चार देवी, एक एक देवी हजार के परिवार सहित सब देविय हजार हजार वैक्रिय रूप कर सकती हैं।
१४ अनीका द्वार-हाथी, घोडे आदि ७ प्रकार अनीका है प्रत्यक में ५०८००० देव होते हैं।
१५ वैक्रिय द्वार-समग्र जम्बू द्वीप भरा जाय इतने रूप बनावे, संख्यात द्वीप समुद्र भरने की शक्ति है।
१६ अवधि द्वार-ज. २५ यो०, उ० ऊंचा ज्योतिषी का तला, नीचे पहली नरक और तीर्छ संख्यात द्वीप समुद्र जाने देखे ।
१७ परिचारण द्वार-(मैथुन) ५ प्रकार से भवन पति समान।
१८ सुख द्वार-अबाधित मनुष्यों के सुखों से अनन्त गुणा सुख है।
१६ सिद्ध द्वार-वाण व्यन्तर देवों में से निकल कर १ समय में १० सिद्ध हो सके व देवियों में से ५ हो सके।
२० भव द्वार-संसार भ्रमण करे तो १-२-३ जीव अनन्त भव कर।
२१ उत्पन्न द्वार-सर्व जीव अनन्ती वार वाण व्यतन्र में उत्पन्न हो आये हैं परन्तु इन पौगलिक सुखों से सिद्धि नहीं हुई।
॥ इति वाण व्यन्तर विस्तार सम्पूर्ण ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org