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________________ वाण व्यन्तर विस्तार । (६६१ ) देवों के असंख्यात नगर हैं जो संख्याता संख्याता योजन के विस्ता वाले और समय हैं । ४ राजधानी द्वार-वनपति से कम विस्तार वाली प्रायः १२ उजाप यो पर की तीखें लोक के द्वीप समुद्रों में रत्नमय राजधानियें हैं। ___५ सभा द्वार-एकेक इन्द्र के ५-५ सभा है भवन पति वत् । ६ वर्ण द्वार-यक्ष, पिशाच, महोग, गंधर्व का श्याम वर्ण, किन्नर का नील , राक्षस और किंपुरुष का श्वेत, भूत का काला । इन वाण व्यन्तर देवों के समान शेष ८ व्यन्तर देवों के शरीर का वर्ण जानना । ७ वस्त्र द्वार--पिशाच, भूत, राक्षस के नीले वस्त्र, यक्ष किन्नर किंपुरुष के पीले वस्त्र, महोरग गन्धर्व के श्याम वस्त्र एवं शेष व्यन्तरों के वस्त्र जानना । ८चिन्ह और है इन्द्र द्वार-प्रत्येक व्यन्तर की जाति के दो २ इन्द्र हैं। व्यन्तर देव दक्षिण इन्द्र उत्तर इन्द्र धजा पर चिन्ह पिशाच कालेन्द्र महा कालेन्द्र कदम वृक्ष भूत सुरूपेन्द्र प्रति रुपेन्द्र सुलक्ष , यक्ष पूर्णेन्द्र मणिभद्र बड , राक्षप्त भीम महा भीम खटंक उपकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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