SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 667
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भवनपति विस्तार । ( ६५५) Antarvvvvvv (१) उत्पात सभा ( देव उत्पन्न होने के स्थान ), (२) अभिषेक सभा ( इन्द्र के राज्याभिषे . का स्थान) (३) अलंकार सभ' ( देवों के वस्त्र भूषण-अलंकार सजने के स्थान ) ( ४ ) व्यवाय सभा ( देवयोग्य धर्म नीति की पुस्तकों का स्थान ) और (५) सौधर्मी सभा ( न्यायइन्साफ करने का स्थान) ५ भवन संख्या -कुल भवन ७७२००००० है जिन में ४ क्रोड ६ लाख भवन दक्षिण में और ३ कोड़ ६६ लाख भवन उत्तर दिशा में हैं विस्तार यन्त्र से समझना। ६ वर्ण, ७ वस्त्र चिन्ह ६ इन्द्र द्वार-यन्त्र से जानना भवन THE वस्त्र । क इन्द्र दो २ नाम वर्ण चिन्ह वर्ण उतर के दक्षिण के EE असुरकुमार ३० ३४काला रक चूडामणि बलेन्द्र चमरेन्द्र नाग " ४० ४४ श्वेत नीला नागफण भूतन्द्र धरणेन्द्र सुवर्ण" ३४ ३-सुवर्ण श्वेत गरुड़ वेणुदाली वेणु देव विद्युत " ३६ ४० रक्त नीला वज्र हरिसिंह हरिकन्त ४० " " कलश अग्नि मानव अग्निसिंह द्वाप " ३६ ४० " " सिंह विशेष्ट पूर्ण दिशा " ३६ ४०पांडर " अश्व जल प्रभ जलकन्त उदधि " ३६ ४०सुवर्ण श्वेत गज अमृत वाहन अमृत गति पवन " ४६ ५०श्यामपं.वर्ण मगर प्रभंजन वेलव स्तनित" ३६ ४० सुवर्ण श्वेत वर्धमान महाघोष घोष श्रांग्न Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy