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थोकडा संग्रह।
मन की स्थापना करे (२६) सतरह भेद से संयम पाले (२७) बारह प्रकार का तप करे(२८)कम टाले(२६)विषय सुख टाले (३०) अप्रतिबन्धपना करे (३१) स्त्री पुरुष नपुंसक रहित स्थान भोगवे (३२) विशेषतः विषय आदि से निवर्ते (३३) अपना तथा अन्य का लाया हुवा आहार वस्त्रादि इकठे करके शंट लेवे इस प्रकार के संभोग का पच्चखाण करे (३४) उपकरण का पच्चखाण करे (३५) सदोष आहार लेने का पच्चखाण करे (३६) कषाय का पच्चखाण करे करे (३७) अशुभ योग का पच्च० (३८) शरीर शुश्रूषा का पच्च० (३६) शिष्य का पच्च० (४०) श्राहार पानी का पच्च० (४१) दिशा रूप अनादि स्वभाव का पच्च० (४२) कपट रहित यति के वेष और प्राचार में प्रवत (४३) गुणवन्त साधु की सेवा करे (४४) ज्ञानादि सर्व गुण संपन्न होवे (४५) राग द्वेष रहित प्रवते (४६) क्षमा सहित प्रवते (४७) लोभ रहित प्रवत (४८) अहङ्कार रहित प्रवर्ते (४९) कपट रहित (सरल-निष्कपट ) प्रवर्त (५०) शुद्ध अन्त:करण ( सत्यता ) से प्रवर्ते (५१) करण सत्य ( सविधि क्रिया काण्ड करता हुवा ) प्रवर्त (५२) योग ( मन, वचन, काया) सत्य प्रवत (५३) पाप से मन निवृत कर मनगुप्ति से प्रवर्ते (५५) काय-गुप्ति से प्रवर्ते (५६) मन में सत्य भाव स्थापित करके प्रवर्ते (५७) वचन ( स्वाध्यादि) पर सत्य भाव स्थापित करके प्रवर्त (५८) काया को सत्य भाव से
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