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सम्यक् पराक्रम के ७३ बोल।
(६४५)
प्रवर्ताचे (५६) श्रुत ज्ञानादि से सहित होवे (६०) समकित सहित होवे (६१) चारित्र सहित होवे (६२) श्रोत्रेन्द्रिय(६३) चक्षुइन्द्रिय - (६४) घ्राणेन्द्रिप-(६५) रसेन्द्रिय-(६६) स्पर्शन्द्रिय-का निग्रह करे (६७-७०) क्रोध, मान, माया, लोभ जीते (७१) राग द्वेष और मिथ्यात्व को जीते (७२) मन, वचन, काया के योगों को रोकते हुवे शैलेषी अवस्था धारण करके और (७३ ) कर्म रहित होकर मोक्ष पहुँचे।
एवं आत्मा ७३ बोलों के द्वारा क्रमशः मोक्ष प्राप्त करके शीतलीभूत होती है।
॥ इति सम्यक पराक्रम के ७३ बोल सम्पूर्ण ।
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