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________________ सम्यक् पराक्रम के ७३ बोल | * सम्यक् पराक्रम के ७३ बोल ( श्री उत्तराध्ययन सूत्र २८ वां अध्ययन ) (१) वैराग्य था मोक्ष पहुंचने की अभिलाषा । (२) विषय - भोग की अभिलाषा से रहित होना । (३) धर्म करने की श्रद्धा । (४) गुरु स्वधर्मी की सेवा - भक्ति करना ! (५) पाप का लोचन करना । ( ६४३ ) (६) श्रात्म दोषों की आत्म--साक्षी से निन्दा करना । (७) गुरु के समीप पाप की निन्दा करना । (८) सामायिक ( सावद्य पाप से निवृत होने की मर्यादा ) करे | (६) तीर्थकरों की स्तुति करे । (१०) गुरु को वंदन करे । (११) पाप निर्वतन - प्रति क्रमण करे । (१२) काउसग्ग करे (१३) प्रत्याख्यान करे ( १४ ) संध्या समय प्रतिक्रमण करके नमोत्थुरां कहे, स्तुति मंगल करे (१५) स्वाध्याय का काल प्रतिलेखे (१६) प्रायश्चित लेवे (१७) क्षमा मांगे (१८) स्वाध्याय करे (१९) सिद्धान्त की वाचनी देवे (२०) सूत्र - अर्थ के प्रश्न पूछे (२१) वारंबार सूत्र ज्ञान फेरे (२२) सूत्रार्थ चिंतत्रे (२३) धर्म कथा क. (२४) सिद्धान्त की आराधना करे (२५) एकाग्र शुभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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