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________________ श्राहार के १०६ दोप। (६३१) - NA के लिये अन्य चीजें मिलावे ( दूध में शकर आदि मिलाव) (२) द्वेष-दोप-निरस आहार मिलने से घृणा लावे तो (३) राग-दोष-सरस ,, , , खुशी,, ,, (४) अधिक प्रमाण में [ ढूंस २ कर ] अाहार करे तो [५] कालातिकम दोष-पहेले पहर में लिये हुवे का ४ थे पहेर में आहार करे तो। [६] मार्गातिक्रम दोष-दो गाउ से अधिक दूर लेजाकर आहार करे तो। [७] सूर्योदय पहेले सूर्योदय पश्चात् आहार करे तो । [८] दुष्काल तथा अटवी में दानशालाओं का , लेवे तो। [६] ,, में गरीबों के लिये किया हुवा आहार ,,, [१०] ग्लान-रोगी प्रमुख , " " " " " [११] अनाथों के लिये , " " " " [१२] गृहस्थ के आमन्त्रण से उसके घर जाकर आहार लेंवे तो। श्री प्रश्न व्याकरण सूत्र में बनाये हुवे ५ दोष [१] मुनिके निमित्त आहार का रूपान्तर करके देवे तो १२] , , , , , पोय पलट , , " [३] गृहस्थ के यहां से अपने हाथ द्वारा आहार लेवे तो [४] मुनि के निमित्त भंडारिये आदि के अन्दर से निकाल कर दिया हुवा आहार लेवे तो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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