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________________ योकडा संग्रह। २१ बन्ध द्वार--तीनं संयति ७-८ कम बांधे. सूक्ष्म ६ कर्म बान्धे, (मोह, आयु. छोड़ कर ), यथा० बांधे तो शाता वेदनी अथवा अबन्ध (नहीं बान्धे ) २२ वेदे द्वार-चार संयति ८ कर्म वेदे यथा० ७ कर्म (मोह सिवाय ) तथा ४ कर्म ( अघातिक) वेदे। २३ उदीरणा द्वार--सामा० छेदो० परि०७८.६ करें उदेरे ( उदिपणा करे )सूक्ष्म० ५.६ कम उदेरे (६ होवे जो आयु, मोह सिवाय ) ५ होवे तो अायु, माह, वेदनी सिवाय यथा० ५ कर्म तथा २ कर्म (नाम गोत्र ) उदेरे तथा उदि० नहीं कर २४ उपसंपज्माणं द्वार-सामा० वाले सामा० संयम छोडे तो ५ स्थान पर (छेदो० सूक्ष्म० संयम तथा असंयम में ) जावे, छेदो० वाले छोडे तो ५ स्थान पर (सामा० परि० सूक्ष्म०संयमा०तथा असंयम में) जावे परि० वाले छोडे तो २ स्थान पर (छेदो० असंयम में) जावे,सक्षम वाले छोडे तो ४ स्थान पर (सामा० छदो० यथा०असंयम में ) जावे, यथा० वाले छोड़े तो ३ स्थान पर (सूक्ष्म० असंयम तथा मोक्ष में ) जावे। २५ संज्ञा द्वार--३ चारित्र में ४ संज्ञावाला तथा संज्ञा रहित शेष में संज्ञा नहीं। २६ आहार द्वार-४ संयम में आहारिक और यथा. श्राहारिक और अनाहारिक दोनों होवे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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