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________________ संजया ( संयति)। (६१३ ) २७ भव द्वार-३ संयति ज० १ भव को उ० ८ भव (८ मनुष्य का, ७ देवता का एवं १५ भव ) करके मोक्ष जावे सूक्ष्म ज० १ भव उ० ३ भव करे यथा० ज०१ उ० ३ भव करके तथा उसी भव में मोक्ष जावे । २८ अागरेश द्वार-संयम कितनी वार श्राचे १ नाम एक भव अपेक्षा अनेक भव प्रोक्षा ज. उत्कृष्ट ज, उत्कृष्ट समायिक १ प्रत्येक सौ वार २ प्रत्येक हजार वार छेदोपस्था ० १ २ नव सो वार से अधिक परिहार वि०१ तीन वार २ , " सूक्ष्म सं० १ चार , २ नव वार यथा ख्यात १ दो , २ पांच ,, २६ स्थिति द्वार संयम कितने समय रहे ? एक जीवापेक्षा अनेक जीवापेक्षा नाम ज० उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट सामायिक १ स. देश उ.को.पू० शाश्वता शाश्वता छेदोपस्था० , , , २० वर्ष ५० कोड़ सागर परिहार वि०, २६ वर्ष उणा,, देश उणा. देश उ. को.पू. २५० वर्ष सूक्ष्म संपराय ,, अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त अन्तर्मुहूर्त यथा ख्यात , देश उणा को.पू. शाश्वता शाश्वता ३० अन्तर द्वार-एक जीवापेक्षा ५ संयति का अन्तर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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