SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 622
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०) थोकडा संग्रह। तो पांच में से १ पदवी पाव, परि० प्रथम ४ में से १ पदवी पावे । सूक्ष्म० यथा० वाले अहमेन्द्र पद पावे, ज. विरा. धक हो तो ४ प्रकार के देवों में उपजे, उ० विराधक होके तो संसार भ्रमण करे। १४ संयम स्थान--सामा० छेदो० परि० में असं. ख्यासं० स्थान होवे. सूक्ष्म० में अं० मु० के जितने असंख्य और यथा० का सं० स्थान एक ही है । इनका अल्प बहुत्व। सर्व से कम यथा० संयति के संयम स्थान उनसे सूक्ष्म संपराय के सं० स्थान असंख्यात गुणा ,, परि हार वि०, " " " " सामा० छेदो० ,,,,, ,, परस्पर तुल्य १५ निकासे द्वार-एकेक संयम क पर्यव (पजेवा) अनन्ता अनन्त हैं प्रथम तीन संयति के पर्यव परस्पर तुल्य तथा षट् गुण हानि वृद्धि सूक्ष्म यथा०से ३ संयम अनन्त गुणा न्यून हैं सूक्ष्म० तीनों ही से अनन्त गुणा अधिक है परस्पर षट् गुण हानि वृद्धि और यथा० से अनन्त गुणा न्यून है यथा० चारों ही से अनन्त गुणा अधिक है परस्पर तुल्य है। अल्प बहुत्व । १ सर्व से कम सामा०छेदो के ज० संयम पर्यव(परस्पर तुल्य) उन, Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy