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________________ संजया ( सयति)। ( ६०६ ) संहरण अपेक्षा अकर्म भूमि में भी होवे, परन्तु परिहार विशुद्ध संयति का संहरण नहीं होवे । १२ काल द्वार-सामा०अवसर्पिणी काल के ३४. ५ आरा में जन्में और ३-४.५ आरा में विचरे, उत्स० के २३.४ अारा में जन्में और ३-४ आरा में विचरे महा विदेह में भी होवे । संहरण अपेक्षा अन्य क्षेत्र (३० अकर्म भूमि) में भी हावे । छदो० महाविदेह में नहीं होवे, शेष ऊपर वत् परि० अवस० काल के ३-४ पारा में जन्मे-प्रवत,उत्स० काल के २.३.४ आरा में जन्में और ३.४ आरा में प्रवते सक्ष्म० यथा० संयति अवस० के ३.४ आरा में जन्मे और प्रवर्ते । उत्स० काल के २-३-४ आरा में जन्मे और ३-४ आरा में प्रवर्ते महाविदह में भी पावे, संहरण अन्यत्र भी हो। १३ गति द्वारसं० नाम गति स्थिति जघन्य उत्कृष्ट जघन्य उत्कृष्ट सामा छेदोप०सौधर्म कल्प अनुत्तर विमान २ पल्य२३सागर परिहार विशुद्ध , सहस्रार ,, २, १८, सूक्ष्म संपराय अनुत्तर विमान अनुत्तर,, ३१ सागर ३३ ,, यथा ख्यात , , , ,३१, ३३, देवता में ५ पदवी हैं-इन्द्र, सामानिक त्रियस्त्रिंशक, लोकपाल और अहमेन्द्र, सामा० छेदो० अराधा हो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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