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________________ थोकडा संग्रह। ६ पडिसेवण द्वार. सामा०, छेदो०, संयति मूल गुण प्रति सेवी ( ५ महाव्रत में दोष लगावे ) तथा उत्तर गुण प्रति सेवी ( दोष गव) तथा अप्रति सेवी (दोष नहीं भी लगावे) शेष ३ संरति अप्रति सेवी ( दोष नहीं लगावें) ७ ज्ञान हार-४ संयति में ४ ज्ञान (२.३.४) की भजना और यथायात में ५ ज्ञान की २.जना ज्ञानाभ्यास अपेक्षा-सामा०, हेदो, में ज. अष्ट प्रवचन (५ समिति, ३ गुप्ति ) 30 १४ पूर्व तक परि० में ज०६ चे पूर्व की तीसरी प्राचार वत्थु तक उ० ६ पूर्व सम्पूर्ण सूक्ष्म सं० और यथा० ज० अष्ट प्रवचन तक उ० १४ पूर्व तथा सूत्र व्यतिरिक्त । तीर्थ द्वार-सामायिक और यथाख्यात संयति तीर्थ में, अतीर्थ में, तीर्थकर में और प्रत्येक बुद्ध में होने छदो०, परि०, सूक्ष्म तीर्थ में ही होवे ।। हलिंग द्वार -परि० द्रव्ये भाव स्वलिंगी होवे शेष चार संयति द्रव्ये स्वलिंगी, अत्यलिंगी तथा गृहस्थ लिंगी होवे परन्तु भावे स्वलिंगी होवे । १० शरीर द्वार-सामा०, छेदो०, में ३.४-५ शरीर होवे शेष तीन में ३ शरीर । ११ क्षेत्र द्वार-सामा०, सूक्ष्म०, तथा०, १५ कर्म भूमि में और छेदो०, परि० ५ भरत ५ ऐरावर्त में होवे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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