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________________ नियंठा । ( ५६३) उसे पुलाक लब्धि कहते हैं । २ चारित्र पुलाक. इसके ५ भेद-ज्ञान पुलाक, दर्शन पुलाक, चारित्र पुलाक, लिं । पुलाक (अकारण लिंग-चेष बदले ) और अह सुहम्म पुलाक ( मन से भी अकल्पनीय वस्तु भोगने की इच्छा करे ।) वकुश-खले में गिरी हुई शाल वतु इसके ५ भेद१ आभोग ( जान कर दोष लगावे ) २ अनाभोग ( अजानता दोष लगे ) संबुड़ा (प्रकट दोष लगे )४ असंबुडा ( गुप्त दोष लगे) ५ अहासुहम्म ( हाथ मुंह धोवे, कजज प्रांजे इत्यादि) ३ पडिसेवण- शाल के उफने हुवे खले के समान इसके ५ भेदः- १ शान २ दर्शन ३ चारित्र में अतिचार लगावे ४ लिंग बदले ५५ करके देवादि की पदवी की इच्छा करे। ४ कषाय कुशील- फोंतरे वाली-कचरे विना की शाल समान इसके ५ भेद-१ ज्ञान २ दर्शन ३ चारित्र में क.पाय करे ४ कषाय कर के लिंग बदले ५ तप करके कषाय करे। ५ निग्रंथ-फोतरे निकाली हुई व खण्डी हुई शाल. वत् इसके ५ भेद-१ प्रथम समय निग्रंथ (दशवें गुण० से ११ वें तथा १२ वें गुण० पर चढ़ता प्रथम सभयका) २ अप्रथम समय निग्रंथ ( ११-१२ गुण० में दो समय से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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