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________________ थोडा संग्रह | अधिक हुवा हो ) ३ चरम समय ( एक समय छद्मस्थपन का बाकी रहाहो ) अचरम समय ( दो समय से अधिक समय जिसकी छद्मस्थ अवस्था बाकी बची होवे ) और ५ हाम्म निर्बंध (सामान्य प्रकारे वर्ते) ६ स्नातक - शुद्ध, अखण्ड, चावल समान, इसके ५ भेद. १ अच्छवी (योग निरोध ) २ असले ( सबले दोष रहित ) ३ कम्मे (घातिकर्म रहित ) ४ संयुद्ध ( केवली ) और ५ अपरिस्सवी ( श्रबंधक ) २ वेद द्वार - १ पुलाक पुरुष बेदी और नपुंसक वेदी २ वकुश पु० स्त्री० नपुं० वेदी ३ पडिसेवण । - तीन वेदी ४ कषाय - कुशील तीन वेदी और श्रवेदी ( उपशान्त तथा क्षीण ) ५. निर्ग्रथ प्रवेदी ( उपशान्त उथा क्षीण ) और ६ स्नातक क्षीण अवेदी होवे । * ३ रागद्वार - ४ निर्ग्रथ सरागी, निर्ग्रथ ( पांचवाँ ) वीतरागी ( उपशान्त तथा क्षीण ) और स्नातक क्षीण वीतरागी होवे । ४ कल्प द्वार - कल्प पांच प्रकार का ( स्थित, अस्थित, स्थिवर, जिन वल्प और कल्पातीत ) पालन होता हैं । इसके १० भेद ( प्रकार ) – १ अचेल, २ उद्देशी, ३ राज पिंड, ४ सेज्जान्तर, ५ मास कल्प, ६ चोमासी कन्प, ७ व्रत, ८ प्रतिक्रमण कीर्ति धर्म १० पुरुषा ज्येष्ट | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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