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________________ वेदना-पद । ( ५७६ ) ३ वेदना तीन प्रकार की - शारीरिक, मानसिक और शारीरिक-मानसिक । समुच्चय जीव में ३ प्रकार की वेदना । संज्ञी के १६ दण्डक में ३ प्रकार की । स्थावर, ३ विश्लेन्द्रिय में १ शारीरिक वेदना । ४ वेदना ३ प्रकार की - शाता, अशाता और शाताअशाता । समुच्चय जीव और २४ दण्डक में तीनों ही वेदना होती है । ५ वेदना ३ प्रकार की - सुख, दुख और सुख-दुख समुच्चय और २४ दण्डक में तीन ही प्रकार की वेदना वेदी जाती है । ६ वेदना २ प्रकार की - उदीरणा जन्य ( लोच तपश्चर्यादि से ;; २ उदय जन्य ( कर्मोदय से ) तिर्यच पंचेन्द्रिय और मनुष्य में दोनों ही प्रकार की वेदना; शेष २२ दण्डक में उदय जन्य ( औपक्रमीय ) वेदना होवे । ७ वेदना २ प्रकार की निंदा और अनिंदा | नारकी, १० भवनपति और व्यन्तर एवं १२ दण्डक में दो वेदना | संज्ञी निंदा वेदे । श्रसंज्ञी निंदा वेदे । ( संज्ञी सज्ञी मनुष्य, तिर्यच में से मर कर गये इस अपेक्षा समझना ) | - पांच स्थावर, ३ विकलेन्द्रिय अनिंदा वेदना वेदे ( संज्ञी होने से ) । तिर्येच पंचेन्द्रिय और मनुष्य में दोनों प्रकार की वेदना, ज्योतिषी और वैमानिक में दोनों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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